Fire

अग्नि कई भावों को एक साथ एक पटल पर खड़ा कर देती है। व्यक्त करने के लिए किसी एक गुण पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी हो जाता है।
मुझे अग्नि एक नर्तकी सरीखी लगती है और स्वभावगत एक उत्सव की तरह। उसके प्रवेश होते ही शुरू होता है विभिन्न रसों का एक अद्भुत नृत्य। सबसे पहले वह भूख बनकर प्रस्फुटित होती है, फिर उसके शाखों पर अंकुरित होते हैं
कामना, इच्छा,प्रेम, प्रायश्चित,आकांक्षा,अहंकार,काम, क्रोध, मोह, संताप तमाम वासनाओं के फूल। मनुष्य जीवन की बोध यात्रा में आरंभ से अंत तक उसकी उपस्थिति एक उत्प्रेरक का काम करती है। जठराग्नि से आरंभ हुई मन के राग रंग से गुजरती हुई चिता की अग्नि में समाहित हो जाती है।

एक काव्य अभिव्यक्ति
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एक सहचारिणी है अग्नि
सहस्त्र जन्मों से
चित्त में गुथी हुई

एक साक्ष्य सदा से
काया के हर कृत्य की
भाव की स्वभाव की

एक नर्तकी है अग्नि
काया के तिमिर में
उसका प्रवेश है एक उत्सव

ओज है अग्नि
निरंतर होते यज्ञ से
आलोकित होता देह कुंड

ईश्वर की एक स्मृति है
जीवन ज्योत से
चिता की अग्नि तक

~अंतरा

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • 6ft by 4ft

  • Year 2024