Swayamsiddha
Journey from metamorphosis to truism.. Here’s my latest in this series!
स्वयंसिद्धा है वह
पृथ्वी के गर्भ से निकली एक पृथ्वी
अपनी कूची सूरज में डुबो
सुनहरी किरणों से स्वप्न भरा करती है आंखों में
नदियां प्रवाहित हैं नसों में रक्त की जगह
जल में समाहित द्वीप सदृश
रचती है अपना इंद्रधनुष
चांद के उजले कैनवस पर
जब तितलियां बैठती है उंगलियों के पोरों पर
अपने मुक्त केश चंद्रमा के उजले रेशों से बांध
हृदय की कच्ची गलियों में निकल जाती है
सितारों से करती है श्रृंगार
कुंठित सोंच के काले दंशों को
तलुवे के नीचे दबा
अपने नीले एकांत में
हथेली पर पीले फूल उगा लिया करती है
श्वासों के अनवरत थाप पर
लिख रही कहानियां रंगों की भाषा में
जीवन की किताब में
आरोह अवरोह के मध्य
आसन्न
वह स्वयंसिद्धा!
~अंतरा
Project Details
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Acrylic on Canvas
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Size : 48 x 36 inches
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Year 2022