Becoming unbecoming
अनवरत यात्रा हूँ मैं
सदियों की आहटें
बोलती है स्पंदन में
लिपटा है कदमों से मेरे
कई हज़ार मीलों का सफ़र
श्वास मुठ्ठी में पकड़
चिर निद्रा से उठी हूँ
उनींदी आंखें
स्वप्न में भी स्वप्न देखती हैं
किसी कश्ती सी तिरती
उत्प्लावित
शनैः शनैः
न होने का स्थायित्व
सघन है
होने की विरलता से!
-अंतरा
Project Details
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Acrylic on Canvas
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Size - 24 x 36 inches
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Year 2021