‘अस्तित्व’
दिल को कहीं अटकने के लिए किसी ठोस कारण की ज़रूरत नहीं, कोई दिमाग़ की तरह नापजोख करनेवाला तार्किक या बुद्धिजीवी नहीं वो..सरल है निश्छल है,बिछ जाने को तैयार। बड़ी बातें नहीं लुभाती उसे, छोटी छोटी बातों पर झट एक टुकड़ा निकाल कर हर उस जगह, वस्तु या इंसान में रख देता है जो उसे छू जाए। सफर में चलते चलते जब भी हम मुड़ कर पीछे देखते हैं तो वह टुकड़ा वहीं दिखता है, भीगा हुआ उस क्षण के उजास से और भर देता है हमारी आज की ठंडी दुनिया में थोड़ी सी गर्माहट।
कुछ इसी ख़्याल से उपजी है यह कलाकृति जिसको अस्तित्व में आने में तकरीबन सात आठ वर्ष लग गए। मेरी बेहद करीबी मित्र हैं जो मेरी कलायात्रा में शुरुआती दिनों से मेरे साथ हैं और मेरी कल्पनाओं को विस्तार देने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। corporate दुनिया में वर्षों तक अपनी मेहनत और लगन से सफलता के नए आयामों को छूने वाली, एक बेहद सुलझी, खुशमिज़ाज और सूफ़ियाना सी शख़्सियत..मेरी नज़र में यह उन कुछ चुनिंदा लोगों में हैं जो बखूबी जानते हैं आसमां छूने के लिए ज़मीन पर जड़ें गहरी होनी चाहिए।
उनके दिल के बेहद करीबी एहसासों को एक आकार देने की कोशिश की है हालांकि आसान नहीं था उनके जुड़ावों की लम्बी फ़ेहरिस्त को तरतीब से उकेरना, इतना भर ही डालना कि न रंग आंखों को चुभे और न ही तत्व। उनके मन में घुस कर भिलंगना नदी से ले कर टिहरी डैम, घंटाघर, बर्फीले पहाड़, स्टेप फ़ार्मिंग,शुद्ध नीला आकाश, देवदार के पेड़, बुरांश फ़्योली के फूल, मां भुवनेश्वरी का मंदिर, नानी मां का घर, धुलीअर्ग रंगोली, झिंगोरा का पौधा, खास आभूषण नथ, टिमनिया, पउंची और पिछौड़ दुपट्टा उकेर पाई और मुझे खुशी है कि उन्हें जो चाहिए था वो मिल पाया!
एक छोटी सी कविता खास उनके लिए
एक गोपनीय अनुबंध था उसका
नाचती मटमैली एक्वा भिलंगना नदी से
उसका बांध सीधा हृदय से बंधा था
जिससे हो कर गुजरती थी बस छुट्टियों में
खिड़की से मुंह निकाले
बेसब्री से करती इंतज़ार
उस मोड़ का
जहाँ बर्फ़ीले पहाड़ों में छुपा था
उसके अस्तित्व का बोध
चुपचाप चुन कर रख लेती
मन के दराजों में
बुरांश फ़्योली के फूलों का रंग
देवदार की दृढ़ता
निश्छल हरी हवाएं
सेब खुबानी की मिठास
एक संदूक बनाया खुद को
भर ली सारी ठंडक
गहरे नीले आकाश के सितारों की
छिड़क दिया करती है
उन जगहों पर
जहां ज़िन्दगी ठहरी हुई है!
अंतरा
Project Details
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Acrylic on Canvas
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Size 3ft x 4ft
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2022