Blunting sharp points

Blunting sharp points

Chapter 4 Insight 2

धर्म है खाली हो जाने की अवस्था, पर कैसे हो खाली? पूर्ण होने का विज्ञान तो उपलब्ध है,शास्त्र हैं, शिक्षक हैं, अनेक तरह से अहंकार को मजबूत करने के मार्ग बनाए गए हैं, शून्य होने का क्या शास्त्र है?  लाओत्से कहते हैं तेज़ नोकों को घिस दो। व्यक्तित्व में कई तेज़ नोकें हैं, जिससे हम दूसरे को चुभते हैं। जगत की सारी कलह इसी वजह से है कि हमें दूसरों की नोक ही पता चलती है, खुद की नही। दूसरों की नोक हमें चुभती है तो उन्हें तोड़ने की चेष्टा में हम अपनी नोक मजबूत करने लगते हैं। दूसरे भी यही कर रहे हैं, यह दुष्चक्र चलता रहता है जबतक इसके प्रति सजगता न आ जाए। जो तर्क हम खुद के लिये देते हैं वही दूसरे के लिये भी दें तो स्थिति बिल्कुल बदल जाती है। पर यहां तर्क नही अंतर्दृष्टि की जरूरत है, खुद को दूसरे की जगह रखने की क्षमता हो, तभी अपनी नोकें दिखाई देनी शुरू होती है।

अपनी नोकों को वही हटा सकता है जो असुरक्षा में रहने को राज़ी हो क्योंकि हम जितने सुरक्षित होते हैं, उतनी नोकें बनानी पड़ती हैं। हमारे शब्द, भाषा, सिद्धांत, मान्यता सब सुरक्षा के आयोजन हैं। जब यह समझ आ जाए कि इस विराट सृष्टि के नियम का जो पहिया घूम रहा, उस पर हमारा कोई वश नही तो फिर सुरक्षा की चिंता छूट जाती है।

लाओत्से कहते हैं ‘इसकी ग्रंथियों को सुलझा दें’ पर जब भी हम एक छोर सुलझाते हैं दूसरा उलझ जाता है। सच बोलने का यदि प्रण लिया है तो प्रतिपल झूठ का स्मरण करना पड़ेगा, क्रोध है तो क्षमा का प्रयास। विपरीत को लाने की हमारी व्यवस्था में कुछ भी नही सुलझता।लाओत्से की दृष्टि में सुलझाव का अर्थ है पूरी स्थिति को देखना। भेद की वजह से उलझन है, भेद छोड़ दो और सरलता में जियो, स्वभाव मे जियो, जो हो, फिर कोई उलझन नही।

लाओत्से कहते हैं अपनी नोकों को घिस दो, ग्रंथियों को सुलझा लो और तुम पाओगे कि तुम्हारा अहंकार अस्मिता हो गया, यानी ऐसा मैं जिससे किसी को चोट नही पहुंचती, जिसमें दंश नही सिर्फ आभा रह गई। यह जो विक्षिप्त अहंकार है, जिसे पूर्ण होने की आकांक्षा है, इसकी उद्वेलित तरंगें जलमग्न हो जाएं, और फिर भी यह अथाह जल की तरह तमोवृत सा रहता है। यानी यह जो अस्तित्व है असीम रहस्य में डूबा ही रहेगा। लाओत्से कहते हैं सब हल हो जाएगा उसी दिन तुम पाओगे कि कुछ भी हल नही हुआ। रहस्य का अर्थ है, जो ज्ञात नही, पर अज्ञात भी नही, इतना वृहत है कि कुछ भी कहना सार्थक नहीं, रहस्य खुलता नही और सघन हो जाता है।

Blunting sharp points, unraveling complications, tempering brightness and submerging turmoil. Yet its depth remains as mysterious as dark waters.

 

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • 18" by 23"

  • 2025