फ़कीरी – 5

फ़कीरी – 5

आंतरिक और बाह्य, दो तरीके से हम इस जगत को अनुभव करते हैं, पर यह भी एक भ्रम ही है। अपने विशुद्ध रूप में स्थित होने पर बाहर और भीतर में कोई अंतर नही। बहिर्मुखी प्रवृत्ति द्वैत का भाव पैदा कराती है जबकि अंतरमन तक पहुंचते इस बात की प्रतीति हो जाती है कि ब्रह्म और जीव में कोई भेद नही।

जल में कुंभ कुंभ में जल है , बाहर भीतर पानी।
फूटा कुंभ जल जल ही समाया , यही तथ्य कथ्यो ज्ञानी।।

कबीर अपने इस दोहे में इसी बात को इंगित कर रहे हैं। इस देह को एक मिट्टी के घड़े से तुलना करते हुए कहते हैं कि इस ईश्वर रूपी संसार के सागर में यह घड़ा तैर रहा है जिसके भीतर भी जल है और बाहर भी, मिट्टी की एक पतली परत की वजह से यह भ्रम है कि दोनों अलग हैं, जैसे घड़ा फूटने पर जल का विलय जल में ही हो जाता है ठीक उसी तरह जीवात्मा शरीर से मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाता है।

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size - 4 x 2 ft

  • Year 2022