दोहा- 8

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।।

मन एक प्रिज़्म सरीखा है जिसके जरिये हम जीवन के विभिन्न अनुभवों को जीते हैं। मन अगर स्वस्थ है देह स्वत: स्वस्थ रहती है। कबीर ने सदैव तन की शुद्धि से ज़्यादा मन की शुद्धि पर ज़ोर दिया। उनके इस दोहे में धर्म के नाम पर काया शुद्धि के लिए किए जाने वाले कर्मकांडों पर कटाक्ष है जहां बिना आंतरिक शुद्धिकरण के सब बेकार है। कबीर कहते हैं नहाने धोने से क्या फायदा अगर मन का मैल ही साफ न हो, मछली तो हमेशा जल में रहती है, फिर भी उसमें जो बास है कितना भी धोने पर नही जाती।

Project Details

  • Pen, ink and acrylic on canvas sheet

  • Size A4

  • Year 2022