My Gita – 6
गीता सीरीज़ की आखिरी पेंटिंग और साथ ही इस वर्ष की भी!
आखिर के तीन अध्यायों की परिकल्पना सबसे मुश्किल रही क्योंकि इसमें सम्पूर्ण गीता का सार निहित है, तो कुछ वैसी अनुभूति हो रही थी जैसे समस्त आकाश को मुठ्ठी में पकड़ने की कोशिश हो। कई दफ़ा इन अध्यायों को पढ़ने के बाद भी उतार पाना नामुमकिन लग रहा था। अंततः छोड़ दिया कि जब ईश्वरीय कृपा होगी तो प्रेरणा खुद मिलेगी। परिणाम आपके सामने है!
तीनों अध्यायों का सार
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यह जगत रूपी वृक्ष आध्यात्मिक जगत के वास्तविक वृक्ष का प्रतिबिंब मात्र है। इस आध्यात्मिक जगत का प्रतिबिंब हमारी इच्छाओं में स्थित है, जिस तरह वृक्ष का प्रतिबिंब जल में रहता है, इच्छा ही इस प्रतिबिंबित भौतिक प्रकाश में वस्तुओं के स्थित होने का कारण है। यह वृक्ष वास्तविक वृक्ष का प्रतिबिंब होने के कारण वास्तविक प्रतिरूप है। आध्यात्मिक जगत में ही सबकुछ है। सांख्य दर्शन के अनुसार ब्रह्म इस वृक्ष का मूल है और इसी मूल से पहले प्रकृति, पुरूष और तब तीन गुण निकलते हैं। फिर पांच स्थूल तत्व (पंच महाभूत), फिर दस इंद्रियां, मन आदि। उससे निकलने वाली जड़ो की तुलना जीवों के शुभ अशुभ कर्मों से की गई है। सतो गुण में किये गए सारे कार्य मुक्ति पथ में प्रगति के लिए शुभ माने जाते हैं, इन्हें दैवीय प्रकृति कहते हैं। रजो गुण और तमोगुण आसुरी प्रकृति मानी जाती है, जहाँ मुक्ति की संभावना नहीं। अंतिम तीन अध्यायों में इन्हीं गुणों की विस्तृत व्याख्या है और अंततः जीव के आंतरिक शुद्धिकरण के साथ मुक्ति और ब्रह्म में लीन होने का वर्णन।
ब्रह्म समस्त अभिव्यक्तियों का केंद्र है तो एक तरह से यह भौतिक जगत गोलार्ध के 180° अंश में है और दूसरे 180° गोलार्ध में आध्यात्मिक जगत है। प्रतिबिंब उल्टा है और अभिव्यक्ति भौतिक, अतः क्षणिक है। प्रतिबिंब की प्रकृति क्षणिक होती है परंतु वह स्तोत्र जहां से वह प्रतिबिंबित हो रहा है, शास्वत है। वेदों का उद्देश्य इस प्रतिबिंबित वृक्ष को काट कर आध्यात्मिक जगत के वास्तविक वृक्ष को प्राप्त करना है।
Chapter 16
DEVASUR SAMPADIBHAGYA YOG
(Divine and devilish estates)
Fearlessness, purity of mind, giving alms to the deserved, restrain of senses, Practice of yoga, penance with body, speech and mind, honesty, nonviolence, truth, calmness, sacrifice, envy less, kindness aversion to sensual objects contribute to the divine born…Qualities of those who have taken birth with Deva yog sambath- the divine quality. These qualities liberate.
Arrogance, vanity, pride of wealth, egotism, rage, lust, ill words, wickedness and delusion etc are Asura sambath or devilish traits. They are never liberated. There are three doors for hell kama, krodha and Lobha ( Lust, Anger and greed) which should be relinquished.
Msg: Purification of being
Being good reward in itself
Chapter 17
SHRADHATRAYBHAGYA YOG
(The three fold path)
Three traits in men Sato gun, Rajo gun and tamo gun, three types of penance. For attaining the supreme solitude one should nourish their satvik shraddha (right attitude) as well as perform sanyaas (relinquishment)
Msg: liberation
Choosing the right over pleasant
Chapter 18
MOKSHA SANYAS YOG
(Liberation through Surrender and renunciation)
Sacrifice, alms and austerity are never to be abandoned. They purify the practitioner. Where religion ends there starts spirituality. God realization Dawns when discrimination ends.Refuge in god and attain liberation.
Msg : Union (Brahma nirvana)
Union with god.
Project Details
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Acrylic on Canvas
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Size: 36 x 48 inches
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Year 2022