My Gita – 4
कृष्ण के विश्वरूप को देख पाने के लिए अर्जुन सी पात्रता चाहिए तभी दृष्टि मिलनी मुमकिन है। गीता में वर्णित यह स्वरूप इतना अलौकिक और वृहद है कि भौतिक इंद्रियों से रंगों में समेट पाना असंभव है और परिकल्पना तो और भी मुश्किल। अपने सीमित समझ से बस इतना ही कर पाई।
जो कुछ अर्जुन ने देखा वह अकथ्य था फिर भी संजय धृतराष्ट्र को उस दुर्लभ दर्शन का मानसिक चित्र बनाने का प्रयास करते हैं और उसकी तुलना हजारों सूर्यों से करते हैं। बल, सौंदर्य, ऐश्वर्य या उत्कृष्टता प्रदर्शित करने वाली समस्त अद्भुत घटनाएं चाहे इस लोक में हों या आध्यात्मिक जगत में, कृष्ण की शक्तियों की आंशिक अभिव्यक्तियाँ हैं।अर्जुन आदि से अंत तक ब्रम्हांड की प्रत्येक वस्तु देखते हैं, ज्योतिर्गमय रंगों से युक्त आकाश को स्पर्श करते विष्णु के उग्र रूप में बड़ी बड़ी चमकती आंखें देख कर भय से विचलित हैं और उनसे धैर्य देने की प्रार्थना करते हैं। कृष्ण तब अपना चतुर्भुज रूप प्रदर्शित कर अर्जुन को शांत करते हैं। विश्व रूप के साथ काल रूप और चतुर्भुज विष्णु रूप दिखाने वाले कृष्ण समस्त स्वरूपों के उदगम हैं।
Chapter 10
VIBHUTI YOG
(The divine glories)
Msg: Potential
See divinity all around
Chapter 11
VISHVAROOP DARSHAN YOG
(The cosmic divine form)
Msg: Expanding the mind
Surrender to see the truth as it is
Chapter 12
BHAKTI YOG
(Path of devotion)
Submission to the almighty. Reach the ultimate state with faith and confidence.
Msg: Contracting the mind
Absorb your mind in the higher self
Project Details
-
Acrylic on Canvas
-
Size: 36 x 48 inches
-
Year 2022