‘Message from beyond’

जब टुकड़ों में तैरती हूँ
अक्सर नदी भर आया करती है अंदर
हथेली पर आकाश उतर आता है
नीली चिड़िया के भेस में
पृथ्वी कविता बन जाती है
और ढांप लेती है मुझे खामोशी से
समा जाती है धमनियों में
पेड़ की जड़ों के रास्ते
मैं पत्थर बन देखती हूँ
टकराती नावों को
चांद पिघल कर
बिखरे टुकड़ों को ढक लेता है
श्वेत उजास की निरंतरता
पैगाम है उस दूसरे छोर से!

~अंतरा

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size 36x 36 inches

  • Year 2021