‘As above so below’

चलती फिरती वृक्ष हूँ
सुख सोखती हूँ
दर्द में भींजती हूँ

सुख शाखाएं बन आकाश चूमता है
तिलस्मी नीली चादर में लिपट
कोशिकाएं विचरती है
अंतरिक्ष की गलियो में
नक्षत्रों में सितारों में
उल्काओं पर बैठ
व्योम का पान कर हृदय भरती है

दर्द रक्त मज्जाओं से गुजरता
जड़ों में पहुंच जाया करता है
सींचता है पोसता है
अग्नि की आहूति लेता है
और नदियों का तर्पण
पृथ्वी पर उर्ध्वशीर्ष रख
श्वास की कला सिखाता है

ईथर के धागे से बंधा यह वृक्ष
आकाश धरा के मध्य टिका
जितना उपर है
उतना ही नीचे भी!

~अंतरा

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size 24x24 inches

  • Year 2021