फ़कीरी – 9

खुद को टटोलने की प्रक्रिया में सबसे पहले जिस चीज़ का सामना होता है, वह है मन, जिसका कोई ओर छोर तो दिखाई नही देता, लेकिन सबसे ज़्यादा उलझाए रखने में माहिर है। वह भगाता है और हम सम्मोहन में पीछे पीछे भागते हैं। ठहर कर देखने पर उसका खेल समझ आता है।
कबीर ने मन को ही औजार बना कर खुद को खोजने का रास्ता दिखाया। स्वयं को जानने के लिये इधर उधर किताबों में भटकने के बजाए अपने अंतस में उतरने की प्रक्रिया पर ज़ोर दिया, क्योंकि वहीं सबकुछ छुपा है।

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ॥

इस दोहे में वे मन की चंचलता के बाबत कहते हैं, कि मनुष्य देह पंछी की तरह है, जहां उसका मन जाता है, वह उसके पीछे उड़ा चला जाता है। उसकी प्रवृत्ति पानी जैसी है, जिसके संपर्क में आता है वैसा ही हो जाता है, मतलब जो जैसी संगति करता हैं, उसे वैसा ही फल मिलता है। यानी चुनाव हमारे हाथ है, कि मन की प्रवृत्ति का रुख किस तरफ रखना है, अंततः वही हमारे आने वाले कल का निर्धारण करता है।

Project Details

  • Acrylic on canvas

  • Size- 36 x 36 inches

  • Year 2023