फ़कीरी – 7

फ़कीरी – 7

मन के जटिल विज्ञान को अपनी सहजता की छन्नी से कबीर जिस तरह दिखाते है उससे तो यही महसूस होता है कि सारी जटिलता अपनी ही समझ का फेर है। उन्होंने मन के जंजाल को कई रूपकों से समझाने की कोशिश की है। इस दोहे में विरोधाभास के अलंकार से मन के उलटे स्वभाव का ज़िक्र है।

कबीर माया मोहिनी, मांगी मिलै न हाथ
मन उतारी जूठ करु, लागी डोलै साथ ।।

वे कहते हैं माया का स्वभाव ही है भ्रम का जाल बिछा कर आकर्षण पैदा करना, अपने पीछे आने के लिये सम्मोहित करना, और जितना ज़्यादा उसके पीछे इंसान भागता हैं वह उतना ही भगाती है। अंततः उसके हाथ कुछ नही लग पाता। जो खुद के स्वभाव को जान जाते हैं वह माया के झूठे स्वभाव को पहचान कर उससे दूरी बना लेते है, तब माया ही उनकी अनुचरी हो जाती है यानी जब मन वश में हो जाता है तो आंतरिक और बाह्य दोनो जगत के सुख और ऐश्वर्य खुद चल कर आते हैं।

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size - 4 x 2 ft

  • Year 2022