फ़कीरी – 4

फ़कीरी – 4

कबीर को किताबों से नही जान सकते, उन्हें जानने के लिये उनके पास जाना पड़ेगा, गुनना होगा, खुद को छोड़ना होगा तभी वह उतरेंगे। कबीर शब्द नही अनुभव हैं इसलिए शब्दों में उन्हें बांध पाना मुश्किल है। उन्होंने जो कहा अपने अनुभव से कहा, जो देखा-जाना वही कहा और खरा सच कहा।
इस गीत को वह गुरु के प्रेम में गा रहे हैं, कि इस दुनिया से क्या लेना देना, ईश्वर के धुन में मगन रहना। इस देह रूपी पिंजरे के भीतर मन रूपी मैना बोल रही है, कि आंखें खोल कर देखो, तुम्हारे अंदर ही उसका वास है। कबीर गुरु के महत्व को समझा रहे कि इस जीवन रूपी नदी में तुम्हारी नाव जन्मों से चल रही, केवट यानी गुरु से मिल लो, समर्पण हीं कुंजी है, जो खुद को छोड़ पाए उसी का ईश्वर से मिलन संभव और गुरू चरणों समर्पण करने से ईश्वर तक पहुंचना सरल हो जाता है।

कुछ लेना ना देना मगन रहना
पांच तत्व का बना है पिंजरा,
भीतर बोल रही मैना

गहरी नदिया नाव पुरानी,
खेवटिया से मिल रहना

तेरा साहिब है तेरे में
अखियां खोल देखो नयना
कहत कबीर सुनो भई साधो,
गुरु चरणों में लिपटे रहना ।।

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size : 4 ft x 4 ft

  • Year 2023