फ़कीरी – 3

फ़कीरी – 3

ईश्वर को जानने का कोई निश्चित तरीका या सिद्धांत नही, हर किसी का अनुभव और रास्ता अलग हो सकता है। दुनिया के बनाए अनेक धर्मों और उनके ग्रंथों के ज्ञान को एक तरफ कर कबीर ने मनुष्य धर्म के मूल अर्थ पर जोर दिया, यानी स्वयं का स्वभाव और उसे साधने का प्रयास। उस ज्ञान की बात की जो शास्त्रों में लिखे ज्ञानियों के अनुभव से नहीं मिलता, अंदर से उपजता है और निर्विचार होने से मिलता है। बल्कि भीतर पहले से मौजूद है, सिर्फ स्मरण करने की ज़रूरत है। उनका कहना था कि अगर सत्य की तलाश है तो वह धर्मशास्त्रों में उलझने से नही खुद के अंतस में उतरने से ही संभव है।
उनके विचारों का पंडितो द्वारा विरोध हुआ और उनके कहे को सरफिरी बातें, जिस पर कबीर कहते सारी दुनियां सयानी है बस मैं ही एक दीवाना हूं। उनके इन्ही वचनों पर आधारित है मेरी ये कृति!

“जब मैं भूला रे भाई, मेरे सत गुरु जुगत लखाई
किरिया करम अचार मैं छाड़ा, छाड़ा तीरथ नहाना
सगरी दुनिया भई सुनायी, मैं ही इक बौराना
ना मैं जानूं सेवा बंदगी ना मैं घंट बजाई
ना मैं मूरत धरि सिंहासन ना मैं पुहुप चढ़ाई
ना हरि रीझै जप तप कीन्हे ना काया के जारे
ना हरि रीझै धोति छाड़े ना पांचों के मारे
दाया रखि धरम को पाले जगसूं रहै उदासी
अपना सा जिव सबको जाने ताहि मिले अनिवासी
सहे कसबद बदा को त्यागे छाड़े गरब गुमाना
सत्य नाम ताहि को मिलि है कहै कबीर दिवाना।। ”

कबीर कहते हैं जब मैं भूल गया था कि मैं कौन हूं तो मेरे गुरु ने मुझे मेरी याद दिलवाई। तब मैंने सारी क्रिया, सारे कर्म, आचरण, तीर्थ नहाना छोड़ दिया। गुरु की बात मान कर ऐसे हालात हुए कि सारी दुनियां समझदार लगने लगी और एक मै ही एक पागल। ‘ना मैं जानूं सेवा बंदगी’… कबीर कहते हैं मेरा सब छूट गया, मंदिर जा कर बंदगी करना, फूल चढ़ाना, घंटी बजाना क्योंकि ईश्वर का नाम जपने या देह को जलाने तपाने से ईश्वर खुश नहीं होते, न वस्त्र त्याग करने , न अपनी पांचों इंद्रियों को मारने से। जो ईश्वर ने दिया है उसे सुसंस्कृत करना और विकसित करना हमारा दायित्व है, अत: पांचों इंद्रियों को जितना संवेदनशील बना सके कोशिश वही रहनी चाहिए।
‘दाया रखि धरम को पाले’…दया धर्म बन जाए तब ज्ञान घटित होता है, ईश्वर से साक्षात्कार के साथ संसार के प्रति उदासी हो जाती है। जब भी ज्ञान का जन्म होता है, करुणा का जन्म हो जाता है। यह बोध कि एक का ही विस्तार है सभी, तब सारे गर्व गुमान छूट जाते हैं, किसी के अपशब्द, अपमान करने से कुछ फर्क नहीं पड़ता। न कुछ अच्छा रह जाता है न बुरा, जिसका सारा द्वंद्व खत्म हो गया, वो मुक्त हो गया। फिर वह सत्य के बारे में नहीं बोलता, सत्य उसके माध्यम से बोलता है…कहे कबीर दीवाना!

Project Details

  • Acrylic on Canvas

  • Size : 4 x 2 ft

  • Year 2023